Saturday, June 6, 2020

"ज़िंदगी का सफ़र, है ये कैसा सफ़र कोइ समझा नही कोइ जाना नही"


जीवन क्या है ? क्यो है ? इसकी कोई सार्वभौमिक परिभाषा तो नहीं है  क्योकि ईश्वर ने सबको अलग बनाया है सबकी विचारधारा अलग है सबका सोचने और  समझने का अपना नजरिया होता है व्यक्ति अपने शिक्षा , संस्कारो ,रिति -रिवाज़ो सामाजिक अवस्था के अनुसार मानिसक रूप से विकसित होता है । निःसंदेह मनुष्य जिस भी स्थिति मे होता है चाहे वह सुखी हो या दुखी, सफल हो या असफल वह अपने किये कर्मो  के कारन ही होता है। इस बात में भी कोई दोराय नहीं है की  कोई भी मनुष्य दुखी नहीं होना चाहता हर मनुष्य अपने जीवन में सफल व् सुखी जीवन की कामना करता है। परन्तु क्यों इस संसार में सभी सुखी नहीं है क्यों सब जीवन की कश्मकश में उलझे हुए है?

अधिकांश मनुष्य जो भी कर्म करते  है वो भावना के आवेग में ही कर्म करते  है।  तो क्या हम भावनाओं को जीवन में घटित हो रही समस्या का कारण मान सकते है ?इस सवाल को आप अपने आप से पूछ सकते हैं

श्रीमदभगवद्गीता अनुसार सम्पूर्ण जगत क्रमशः३ गुणों में विभाजित है 
सात्विक ,
तामसिक , 
राजसिक 
इसी प्रकर भावनाये भी इन्ही गुणों में विभाजित है :-

तामसिक भावनाये 
वह भावनाये जिसे महसूस करके स्वयं की आत्मा को दुख पहुँचता हो उन्हें हम तामसिक भावनाये  कह सकते है इस भावना में दुखी होना ,कुंठित होना, उपेक्षित होना शामिल है 

राजसिक भावनाये 
वह भावनाये जिनके आवेश  में आके हम किसी और को मानसिक या शारीरिक हानि पंहुचा देते है उन्हें हम राजसिक भावनाये  कह  सकते है इस  भावना में क्रोध लालच ईर्ष्या ,अहंकार शामिल है

इन सब से परे  धर्म, निति ,विवेक,सदाचार की भावना को सात्विक भावनाये कहते है और जो कोई भी सात्विक भावना के अनुकूल कर्म करते है वह जीवन में सुख व्  शांति पाते है  

"ज़िंदगी का सफ़र, है ये कैसा सफ़र कोइ समझा नही कोइ जाना नही"

जीवन क्या है ? क्यो है ? इसकी कोई सार्वभौमिक परिभाषा तो नहीं है  क्योकि ईश्वर ने सबको अलग बनाया है सबकी विचारधारा अलग है सबका सोचने और  ...